सार
- आधुनिक भारत के रचनाकार थे नेहरू
- नेहरू जाते थे पटेल के घर, लेकिन पटेल नहीं
- दोनों में मतभेद था, लेकिन एक-दूसरे का करते थे सम्मान
- विदेश मंत्री एस जयशंकर को समझकर बोलना चाहिए
- कैबिनेट में शामिल न करना चाहते तो इतना अधिकार भला क्यों देते
- पटेल गुजराती थे, इसलिए गुजराती नेता नेता दे रहे हैं तूल
विस्तार
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की टिप्पणी ने एक बार फिर नया विवाद खड़ा कर दिया है। जयशंकर ने वीपी मेनन की किताब का हवाला देते हुए कहा है कि पं. नेहरू अपने मंत्रिमंडल में सरदार पटेल को शामिल नहीं करना चाहते थे। एस जयशंकर के इस बयान पर पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह ने कहा कि जयशंकर को संभलकर ऐसी टिप्पणी करनी चाहिए।
कुंवर नटवर सिंह ने कहा कि पंडित नेहरू और पटेल की सोच बहुत बड़ी थी। वे छोटी बातें नहीं करते थे। एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। आशीष नंदी, केएन गोविंदाचार्य ने भी इस तरह के टकराव को सही नहीं माना। वहीं वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के चेयरमैन राम बहादुर राय ने कहा कि यह नजरिए का फर्क है।
मेरा विचार है कि विवेचना पूर्वाग्रह रहित होनी चाहिए। आलोचना गांधी जी की भी की गई। उनकी हत्या के बाद संघ पर दोष, स्वयं सेवकों को सताना सब हुआ। इन सबके बाद भी मैं कहूंगा कि नई जानकारी आए, विमर्श हो लेकिन इसका स्वरुप विध्वंसक न हो।
पटेल और नेहरू आजादी के संघर्ष में जेल गए। नेहरू बड़े परिवार के थे। त्याग किया। इसका भी आदर होना चाहिए।
कुंवर नटवर सिंह ने कहा कि पंडित नेहरू और पटेल की सोच बहुत बड़ी थी। वे छोटी बातें नहीं करते थे। एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। आशीष नंदी, केएन गोविंदाचार्य ने भी इस तरह के टकराव को सही नहीं माना। वहीं वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के चेयरमैन राम बहादुर राय ने कहा कि यह नजरिए का फर्क है।
कुंवर नटवर सिंह, पूर्व विदेश मंत्री
मैंने पंडित नेहरू के समय में उनके साथ काम किया है। पंडित नेहरू सरदार पटेल के घर जाते थे। सरदार पटेल नेहरू के घर नहीं गए। ऐसा इसलिए था, क्योंकि नेहरू अपने से उम्र में बड़े पटेल का सम्मान करते थे। उनमें आपस में कभी तू तू मैं-मैं नहीं हुई। पंडित नेहरू के लिए निजी तौर पर यह संभव नहीं था कि वह पटेल को अपने मंत्रिमंडल में शामिल न करें।
सरदार पटेल न केवल पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल में थे, बल्कि पंडित जी ने उन्हें बहुत बड़ा महकमा दिया था। वह देश के उप-प्रधानमंत्री थे। सूचना प्रसारण समेत तमाम विभाग उनके पास थे। हां, कश्मीर और चीन के मामले में नेहरू और पटेल के मतों में अंतर था। यह नीतियों को लेकर था। पटेल इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते थे कि कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले जाया जाए।
वह इसे विध्वंसक संयुक्त राष्ट्र (डेस्ट्रायर संयुक्त राष्ट्र) संघ कहते थे। मैंने खुद चीन के मामले में 07 नवंबर 1950 को पत्र लिखा था। बताया था कि भारत के चीन में राजदूत सही जानकारी नहीं दे रहे हैं। इसके कुछ दिन बाद 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल का देहांत हो गया था। यह नेहरू के लिए बड़ा सदमा था।
सरदार पटेल न केवल पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल में थे, बल्कि पंडित जी ने उन्हें बहुत बड़ा महकमा दिया था। वह देश के उप-प्रधानमंत्री थे। सूचना प्रसारण समेत तमाम विभाग उनके पास थे। हां, कश्मीर और चीन के मामले में नेहरू और पटेल के मतों में अंतर था। यह नीतियों को लेकर था। पटेल इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते थे कि कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले जाया जाए।
वह इसे विध्वंसक संयुक्त राष्ट्र (डेस्ट्रायर संयुक्त राष्ट्र) संघ कहते थे। मैंने खुद चीन के मामले में 07 नवंबर 1950 को पत्र लिखा था। बताया था कि भारत के चीन में राजदूत सही जानकारी नहीं दे रहे हैं। इसके कुछ दिन बाद 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल का देहांत हो गया था। यह नेहरू के लिए बड़ा सदमा था।
सूई भी नहीं बनती थी यहां
जब पंडित जी प्रधानमंत्री बने थे, तो भारत में सूई भी नहीं बनती थी। आज सड़क, रेल, अस्पताल, बांध, विश्वविद्यालय, परमाणु ऊर्जा संयंत्र, बड़े-बड़े कल कारखाने, भवन जो बने हैं, इसके रचनाकार, शिल्पकार पंडित नेहरू ही थे। लोगों के लिए कह देना आसान है, लेकिन जरा संभलकर कहना चाहिए। मैं तो इस तरह के हमलों से हैरान हूं।
नेहरू महात्मा गांधी का चयन थे
कुंवर नटवर सिंह ने बताया कि नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पसंद पर बने थे। सरदार पटेल की उम्र काफी हो चुकी थी। सरदार शरीर से भी बहुत सक्रिय नहीं थे। सरकार की भारत के संदर्भ में अच्छी राय थी, लेकिन वैश्विक एक्सपोजर कम था। वह आजादी के बाद पहली सरकार बनने पर तीन साल के करीब ही जिंदा रहे।
राम बहादुर राय, अध्यक्ष, इंदिरागांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र
कोई देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार बल्लभभाई को जान नहीं रहा है। कुछ तथ्य सामने आ रहे हैं। नई-नई जानकारी सामने आ रही हैं। हम इसे पंडित नेहरू और सरदार को पटेल को आपस में लड़ाया जाना नहीं मानते। सामने आ रहे नये तथ्यों को किस नजरिए से देख रहे हैं, यह महत्वपूर्ण है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस तरह की चर्चा, पं. नेहरू और पटेल के बीच में टकराव को लेकर राम बहादुर का कहना है कि लोगों को जानकारी लेनी चाहिए, उन्हें पढ़ना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि लोग महात्मा गांधी के पोते राम मोहन गांधी की किताब पढ़ लें, उन्हें समझ में आ जाएगा।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस तरह की चर्चा, पं. नेहरू और पटेल के बीच में टकराव को लेकर राम बहादुर का कहना है कि लोगों को जानकारी लेनी चाहिए, उन्हें पढ़ना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि लोग महात्मा गांधी के पोते राम मोहन गांधी की किताब पढ़ लें, उन्हें समझ में आ जाएगा।
आशीष नंदी, समाजशास्त्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री देश को चला रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि गांधी नेहरू परिवार की डायनेस्टी है। परिवार के लोग राजनीति में हैं। यह भविष्य में सत्ता में आ सकते हैं। इसलिए एक बड़ा कारण इस तरह के हमलों का यह है। मैं इतना ही कह सकता हूं कि पिछले कुछ समय से जितना नेहरू को टारगेट किया जा रहा है, वह ठीक नहीं है। नेहरू और पटेल को आपस में लड़ाना ठीक नहीं है। वे एक दूसरे का सम्मान करते थे।
वे बड़े लोग थे। ऊंची सोच रखते थे। जब पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब देश को उनकी जरूरत थी। पिछले कुछ समय से पटेल की छवि को ऊंचा उठा या जा रहा है। नेहरू की छवि खराब की जा रही है, मुझे इसके पीछे एक कारण और नजर आता है। सरदार पटेल गुजराती थे। इसलिए भी ऐसा हो रहा है।
वे बड़े लोग थे। ऊंची सोच रखते थे। जब पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब देश को उनकी जरूरत थी। पिछले कुछ समय से पटेल की छवि को ऊंचा उठा या जा रहा है। नेहरू की छवि खराब की जा रही है, मुझे इसके पीछे एक कारण और नजर आता है। सरदार पटेल गुजराती थे। इसलिए भी ऐसा हो रहा है।
के. एन. गोविंदाचार्य, प्रखर चिंतक व समाज सुधारक
पंडित जवाहर लाल नेहरू की छवि खराब करना ठीक नहीं है। पं. नेहरू और सरदार पटेल में इतना टकराव तो उनके जीवनकाल में नहीं हुआ होगा। मेरा मानना है कि 1960 से पहले पं. नेहरू रूस समेत दुनिया के तमाम देशों में घूमते रहे। वहां से बड़े-बड़े संस्थानों की भारत में स्थापना के लिए सक्रिय रहे, लेकिन 1962 में चीन से युद्ध के बाद उनकी सोच में बदलाव आया था। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारों के भी कुछ करीब आए थे।
नेहरू-पटेल को लेकर की जा रही टिप्पणी को मैं नासमझी मानता हूं। दरअसल उस समय संघ नहीं था। इसलिए आलोचना का आधार कुछ तो होना चाहिए। एक कारण और है। आजादी के बाद सभी ने प्रधानमंत्री के रूप में पंडित नेहरू को करीब 20 साल तक देखा, लेकिन पटेल को नहीं देखा। आजादी के पहले के पटेल और नेहरू के बारे में लोग जानते हैं।
आजादी के बाद के नेहरू के बारे में जानते हैं, लेकिन पटेल को देखने का अवसर ही नहीं मिला। दोनों में नीतियों को लेकर मतभेद था। कश्मीर और चीन पर, भारत में रियासतों के विलय पर अलग राय थी, लेकिन एक-दूसरे के लिए सम्मान भी था। सरदार पटेल आंतरिक भारत के बारे में सोचते थे, नेहरू की सोच बहुत व्यापक थी। उनका यूरोप समेत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार था। वह उस समय के भारत की जरूरत थे।
आजादी के बाद के नेहरू के बारे में जानते हैं, लेकिन पटेल को देखने का अवसर ही नहीं मिला। दोनों में नीतियों को लेकर मतभेद था। कश्मीर और चीन पर, भारत में रियासतों के विलय पर अलग राय थी, लेकिन एक-दूसरे के लिए सम्मान भी था। सरदार पटेल आंतरिक भारत के बारे में सोचते थे, नेहरू की सोच बहुत व्यापक थी। उनका यूरोप समेत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार था। वह उस समय के भारत की जरूरत थे।
मेरा विचार है कि विवेचना पूर्वाग्रह रहित होनी चाहिए। आलोचना गांधी जी की भी की गई। उनकी हत्या के बाद संघ पर दोष, स्वयं सेवकों को सताना सब हुआ। इन सबके बाद भी मैं कहूंगा कि नई जानकारी आए, विमर्श हो लेकिन इसका स्वरुप विध्वंसक न हो।
पटेल और नेहरू आजादी के संघर्ष में जेल गए। नेहरू बड़े परिवार के थे। त्याग किया। इसका भी आदर होना चाहिए।